नमस्कार दोस्तो आप का स्वागत हैं। आपके अपने ब्लॉग ज्ञानीलेख पे,आज हम बात करने वाले हैं भारतीय प्रशानिक सेवा के इतिहास के बारे में. यदि आप IAS(सिविल सेवा) की तैयारी कर रहे हैं , तो आपको सिविल सेवा की शुरुआत कैसे हुई इसकी जानकारी आपको होनी चाहिए .तो आज के इस पोस्ट में हम इसी को लेकर चर्चा करने वाले है और आज के इस पोस्ट में हम मुख्यतः इसकी पृष्ठभूमि(Background) पर बात करने वाले हैं. जिसमे हम इन पर चर्चा करेंगे.
अगर हम सिविल सेवा के इतिहास की बात करें तो इसका प्रमाण हम प्राचीन भारतीय इतिहास में भी देख सकते है.
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भारतीय प्रशासनिक सेवा की शुरुआत कैसे हुई ??? How indian administrative service (IAS) started??? |
- सिविल सेवा की शुरुआत कब,क्यों और कैसे हुई ?
अगर हम सिविल सेवा के इतिहास की बात करें तो इसका प्रमाण हम प्राचीन भारतीय इतिहास में भी देख सकते है.- चाणक्य के 'अर्थशास्त्र' के अनुसार मौर्य साम्राज्य में भी एक ऐसी सुगठित केंद्रीयकृत व्यवस्था थी जिसका मुख्य कार्य कर वसूलना आदि प्रशासनिक कार्यों में अपना सहयोग देना था.
- इसी प्रकार की शासन व्यवस्था गुप्त काल में भी हमें देखने को मिलता है.
- मुग़ल साम्राज्य में भी बड़े स्तर पर इस तरह की व्यवस्था थी,जिसे मनसबदारी का नाम दिया गया। इसमें एक खास क्षेत्र के भू-स्वामी को एक जागीर(क्षेत्र) सौंप दिया जाता था जिसे मनसब कहा जाता था.
- ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से पहले सामान्य अधिकारियों और सैन्य अधिकारियों में कोई विभेद नहीं था।इन अधिकारियों को वेतन के तौर पर कभी-कभी भूमि अनुदान भी दिया जाता था जिस पर पुर्णतः उन अधिकारीयों का स्वामित्व होता था.
- अंग्रेजों के आने के उपरान्त इस व्यवस्था में कई सारे बदलाव हुए। अब इन्होंने इन अधिकारियों को सामान्य और सैन्य अधिकारी दो वर्ग में बांट दिया.ये अधिकारी सार्वजनिक रूप से कर वसूलने का कार्य करते थे.
- ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन सिविल सेवा का विकास
- 1757 ई. के प्लासी युद्ध और 1764 ई. के बक्सर युद्ध के उपरान्त ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक बड़े भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया.अब उन्हें इस बड़े क्षेत्र पर शासन करने के लिए सिविल सेवा की आवश्यकता महसूस होने लगी.
- बंगाल के तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने जिला कलक्टर का एक नया पद का निर्माण किया,जिसका मुख्य कार्य अपने जिला में भू- राजस्व कर वसूलना था.इस पद में अधिक शक्ति होने के कारण इसमें भ्रष्टता आ गयी जिस कारण इस पद को समाप्त कर दिया गया.
- 'लॉर्ड कॉर्नवालिस' को भारतीय सिविल सेवा का पिता माना जाता है.इसने सिविल सेवा को दो भागों में बांट दिया-'उच्च सिविल सेवा' और 'निम्न सिविल सेवा'.
- उच्च सिविल सेवा को ही आज ग्रुप 'A' सेवा के नाम से जाना जाता हैं.उस समय एक नियम के मुताबिक उच्च सिविल सेवा में सिर्फ यूरोपीय ही सेवा दे सकते थे तथा इन्हें बहुत ही अधिक वेतन दिया जाता था.निम्न सिविल सेवा में भारतीय और कुछ यूरोपीय भी होते थे.हांलाकि इन्हें उच्च सिविल सेवा की तुलना में काम वेतन दिया जाता था.
- 1833 ई. के चार्टर एक्ट के अनुसार कोई भी भारतीय कंपनी के अधीन कार्यालय में अपनी सेवाएं नहीं दे सकता था.1853 ई. तक 'कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स' के पास ही सिविल सेवकों को चुनने का अधिकार था जिसका चुनाव यह बहुत ही कड़े ढंग से करते थे.
- 1853 ई. के चार्टर एक्ट के बाद एक खुली प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया जाने लगा.इस परीक्षा का सुझाव लार्ड मैकाले की अध्यक्षता वाली समिति ने दिया.1855 ई. में पहली बार इस तरह की प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया.
- ब्रिटिश राजतन्त्र के अधीन सिविल सेवा का विकास
(1857 ई. के क्रांति के उपरांत)
- 1858 ई. के भारत सरकार अधिनियम के बाद उच्च सिविल को 'भारतीय सिविल सेवा(ICS)' कहा गया.1861 ई. के सिविल सर्विस अधिनियम के बाद कुछ पदों को ऐसे व्यक्तियों के लिए रखा गया,जो 7 वर्ष या उससे अधिक दिनों से भारत में निवास करता हो.इस अधिनियम ने भारतियों के लिए भी उच्च सिविल सेवा में मार्ग प्रशस्त कर दिया.
- 1870 ई. के सिविल सेवा अधिनियम के बाद तो अब भारतीयों की भूमिका अहम् हो गयी.सत्येन्द्रनाथ बोस पहलेभर्तीय थे जिनका चयन भारतीय सिविल सेवा(ICS) में हुआ.
- सिविल सेवा में बदलाव के लिए लॉर्ड डफरिन द्वारा एचिन्सन समिति का गठन किया गया.इस समिति का यह मानना था की अब उच्च और निम्न सिविल सेवा को राष्ट्रीय,प्रांतीय और जिला स्तरीय होना चाहिए.
- ICS को अंग्रेजों के शासनकाल में स्टील फ्रेम कहा जाता था.यह अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन एक विशाल भू-भाग पर शासन करने में अंग्रेजों की सहायता किया करते थे.
- 1917 ई. में अगस्त प्रस्ताव के साथ ही एडविन मोंटेग्यु द्वारा हाउस ऑफ़ कॉमन्स में यह विश्वास दिलाया गया की अंग्रेजी प्रशासन में भारतीयों की संख्या बढ़ाई जाएगी.1930 ई. के दशक में तो सिविल सेवा में अंग्रेजों की तुलना में भारतीय अधिकारीयों की संख्या अधिक हो गई.
- 1934 ई. तक अखिल भारतीय सेवाओं(All India Services) की संख्या 7 थी,जिनमे भारतीय वन सेवा,भारतीय पुलिस सेवा,भारतीय राजनीती सेवा आदि शामिल थे.
- समय के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव
- इसने अंग्रेजों के मन में बैठी इस भावना को भी बहुत हद तक ख़त्म कर दिया,जिससे उन्हें लगता था की ये भारतीय उनके मुकाबले में कमतर है.कयोंकि उस समय अधिकतर उच्च पदों पर यूरोपीय ही विधमान थे.और उस समय भारतीयों को बहुत काम वेतन वाली नौकरी दी जाती थी.
- सिविल सेवा की नियुक्ति परीक्षा लन्दन में आयोजित की जाती थी,जहाँ उनके ज्ञान की परख ग्रीक,लैटिन और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में की जाती थी.इन भाषाओं से अनभिज्ञ होने के कारण परिणाम में भारतीयों का प्रदशन अत्यन्त ही कम था.
- 1860 ई. में अधिकतम उम्र सीमा को 23 वर्ष से घटाकर 22 वर्ष कर दिया गया.इतना ही नहीं 1866 ई. में तो इसे कम करके मात्र 21 वर्ष कर दिया गया.
- आजादी के पश्चात् सिविल सेवा में विकास
- सरदार वल्लभभाई पटेल उन बड़े नेताओं में से थे जिनका मानना था की सिविल सेवा को अंग्रेजी शासन के जैसा ही जारी रखा जाए.क्योंकि उनका मानना था की एक सुसंगठित नौकरशाही व्यवस्था का होना नए स्वतंत्र भारत की एकता और अखंडता के लिए अत्यन्त आवश्यक था.
- उनका यह भी मानना था की अखिल भारतीय सेवाएं, जैसे-भारतीय प्रशासनिक सेवा,भारतीय पुलिस सेवा तथा भारतीय वन सेवा पुरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में समरूपता के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है.उन्होंने तो इसे राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत ही आवश्यक माना.
- सिविल सेवा से सम्बंधित अधिनियम और कानून
- 1853 ई. के चार्टर एक्ट के बाद सिविल सेवा में नियुक्ति के लिए एक खुली प्रवेश प्रतियोगिता का आयोजन किया गया.
- 'एचिन्सन आयोग' ने परीक्षा में बैठने की न्यूनतम और अधिकतम आयु क्रमशः 19 और 23 वर्ष करने का सुझाव दिया.
- 'विसकॉउंट ली आयोग' जिसकी स्थापना 1923 ई. में किया गया ने सिविल सेवकों की परीक्षा को सुचारू ढंग से चलाने के लिए एक लोक सेवा आयोग की स्थापना का सुझाव दिया.1926 ई. में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गयी.
- 1935 ई. का भारत सरकार अधिनियम ने आयोग की शक्तियों को बढ़ाया और इसे संघीय लोक सेवा आयोग का नाम दिया.स्वतंत्रता के पश्चात् यह संघ लोक सेवा आयोग(UPSC) हो गया और इसे संवैधानिक अधिकार भी दिया गया.
- UPSC की स्थापना का उद्देश्य सिविल सेवा की परीक्षा का आयोजन करना था और सिविल सेवक के रूप में एक योग्य उम्मीदवार का चयन करना था.यह परीक्षा पूर्व के ही ICS परीक्षा के परीक्षा शैली पर निर्धारित थी.
- 1976 ई. में कोठारी समिति ने एक त्रि-स्तरीय चयन प्रक्रिया का सुझाव दिया.एक प्रारंभिक परीक्षा जिसमें एक-एक वैकल्पिक प्रश्नपत्र और सामान्य अध्ययन वस्तुनिष्ठ शैली में होंगे.मुख्य परीक्षा में 9 प्रश्न पत्र सम्मिलित थे,जिनमें उम्मीदवार की लेखन शैली का परिक्षण किया जाता था.व्यक्तित्व परिक्षण(साक्षात्कार) अंतिम प्रक्रिया थी.
- 1986 ई. में सतीश चंद्र समिति ने अनिवार्य निबंध प्रश्नपत्र का सुझाव दिया.
- 2004 ई. में होता आयोग ने प्रारंभिक में एक अभियोग्यता प्रश्नपत्र(Aptitude Paper) का सुझाव दिया.
- 2011 ई. में सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में CSAT नाम का एक नया प्रश्नपत्र जोड़ा गया.
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